जले हुए पन्नो सा जीना -
पहेली बारिश के बाद
गीली सुखी कोई किताब
याद दिला जाती है
की सुर्ख़ मौसम भी
अक्सर बदल जाते है
हल्की सी बारिश की बौछारो से.
टपकती रहती है रात -
दिन के उजालो मे जिसे
छिपा छिपा के रखते है
वो लम्हे अंधेरो के आगोश मे
मिलते ही बिखर जाते है
दिन उसके बाद उगता नही
रात फिर कभी आगे बढ़ती नही.
लकीरो से गुम हो जाते है नाम -
कुछ लोग मिल जाते है
मिलो उससे पेहले ही
बिछड़ भी जाते है
कुछ पल साल बन कर
हमसे पिछड़ जाते है
उम्र ढलती रहती है सालो की पल भरमे
- बाक़ी तो कुछ बदलता कहा है ?
Sunday, September 16, 2007
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