Sunday, September 16, 2007

~~~ मेरा कोरा काग़ज़ ~~~

एक बार लिखा था
तुम्हारा नाम
समंदर के किनारे जाकर
गीली गीली भीगी भीगी नर्म रेत पर

सोचा था यही पर लिख देती हू
मैं ही पढ़ लूंगी उसे
कही ओर लिखूँगी तो तुम्हारा नाम
रुसवा हो जाता ना!

एक दफ़ा कवितामे अपना नाम पढ़के
कैसे तुम गभराए थे
दुनिया की परवा करके
कैसे तुम शरमाये थे

पर मेरे लिए तुम्हारा नाम
-जैसे सिर्फ़ नाम नही, बंदगी है
और तुम हो की काग़ज़ पे लिखने
से भी रुसवा हो जाते हो!!!

अब पूरा समंदर का किनारा
मेरा काग़ज़ है कोरा कोरा
मैं लिखती रहती हू नाम तुम्हारा
और समंदर बस पढ़ता ही जाता है

हर बार लिखती हू
तुम्हारा नाम
समंदर के किनारे जाकर
गीली गीली भीगी भीगी नर्म रेत पर

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