एक अधूरी बात …
मैं बस यही हू
जहा
बरसो पेहले छोड़के
गए थे तुम
खड़ी हू अब जैसे
सदियोसे ….
बर्फ़सी ठंडी हो जाती हू
कोई
छुए तो जल-सा जाता है
कुछ ऐसे रंग बदल जाती हूँ ….
फिर कोई तस्वीर मे
साया बनके
लहरा जाती हू …. या फिर
तुम्हारी आहट से
ख़ुद ही सिमट आती हू
बिखरती रहती हू
हवाओमे
कभी, ख़ुश्बू की तरह …
और कभी,
किसी तारे के साथ
मैं भी
टूट जाती हू ….
अमानत हो जैसे कोई
ना जीती हू
ना मर पाती हू
जाने कौन सी वजह है –
नही कोई इंतज़ार
और
नही है किया कोई वादा
फिर भी
जिए जाती हू
अंजानी सी बात है कोई
समज नही
पाती हूँ …
बस, इतना जानती हू
की तुमने कहा था …
तुम मेरा इंतज़ार करो
वो मुजे अच्छा लगता है !
और बस मैं –
Sunday, September 16, 2007
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