Thursday, August 23, 2007

~~~~ चाँद मेरा… ~~~

ख़ामोश रहता है चाँद
तारो भरी रात मे भी
आता है कुछ कहेने
पर यू ही चला
जाता है, बिना कुछ
लिखे, बिना कुछ कहे.

लगता है कहेने के
लिए, कोई लब्ज़ ही
नही उसके पास, पर
बाते तो हज़ार होगी!

रोज़ आता है, बस
एक दिन जाने कहा
चला जाता है, इतने
सारे तारो को छोड़कर
बिना कुछ कहे…

जाकता है कभी
अभ्र मे बिखरे कुछ
बादलोके पीछे से
कभी कोई सितारे
के आगे चुपचाप
खड़ा हो जाता है
बिना कुछ कहे…

जाने क्या कहेना
है उसे, कह ही नही पता
चाँद है फिर भी,
चुपचाप सा रहता है

कल मिल गया
मुजे सुबह सवेरे
हल्का सा धुला हुआ
ओस मे भीगके
कुछ नीला हुआ
सूरज की रोशनी मे
कुछ शरमाया हुआ

पूछ लिया मैने
उसके जाने से पहेले, जल्द ही
क्या बात है जो
बता नही पाता वो,
मुजे ही कहे दे, शायद,

कुछ नही कहा, बस मुस्कुराया
अपनी चाँदनी बिखेर दी मुज पर
और बिखेरते हुए – बस – चला गया……..

~~~ एक सवाल ~~~

सफ़ेद
तकिये पर पड़ा
सूखा लाल गुलाब
(रंग फीका तो नही पड़ा?)
अपने आपमे
जाने कितनी ख़ुश्बू
(शायद तुम्हारी भी!)
छिपाए
इंतज़ार मे है
की कब मैं उठाऊ
और रख दू
वापस
उन खतो के बीच
जो लिखे थे तुम्हे
(और कभी भेजे नही)
और
मैं सोचती हू
अब की बार
ख़त के साथ एक दिन
कुछ ताज़ा गुलाब
भी भिजवा दूँगी तुम्हे
तुम्ही बता दो, मर्ज़ी तुम्हारी
क्या भिजवा दू
गुलाब : लाल या
सफ़ेद?

~~~ रेत ~~~

पैरो के नीचे से सरकती रेत
याद दिलाती है
मेरे हाथोमे कुछ भी
नही
मेरा वजूद
खड़े रहेने के लिए
भी
रेत का मोहताज है

~~~ तेरा नाम ~~~

ओस पे लिख के तेरा नाम
बिखेर देती हू; फिर
ढूँढती रहती हू मैं उसे
समुंदर की गहराई मे.
कभी वो मिल जाता है
बादल के बरसते पानी मे.
कभी बहे निकलता है
मेरे शब्दो की ज़ुबानी मे.
मैं गुनगुना लेती हू उसे
जिसे मैं ही सुन सकती हू.
फिर भी गुनाह-सा लगता है
तेरा नाम कभी-कभी
मुजे मेरा नाम-सा लगता है
ओर कभी ये भी लगता है
की तुम्हारे नाम सा हसीं-
कोई और नाम ही नही
मेरे नाम को उससे जोड़ती रहती हू ऐसे,
जैसे मुझे और कोई काम ही नही.
बस...ओस पे लिखती रहती हू तेरा नाम.

~~~ सूरज ~~~

पता नही क्यू, हर रोज़
सूरज
क्या ढूँढने निकलता है
धरती के इस छोर से
उस और तक
ना जाने क्या ढूंढता है
रोज़ रोज़ आता है
रोज़ चला जाता है
ना थकता है
ना रुकता है
ना रोता है ना सोता है
ना याद, ना फ़रियाद करता है
बस आता है और
चला जाता है
जैसे किसीको
वचन दिया हो
इस जगह, इस वक़्त
तुम्हे हर वक़्त मिलूंगा..
ओर बस आता है
धूप बाँटता है
चला जाता है
कल आने दो सूरज को
कल तो पूछ ही लूंगी
कौन है जिसकी
राहों मैं वो
इतनी पलके बीछाता है
इतने साल हो गये फिरभी
कभी टूटा नही
ऐसा दिया वचन की
फिर कभी सूरज
रूठा नही
इतनी चाहत किससे है
इतनी चाहत कैसे है
जब भी आता है
ज़िंदगी बनाता है
ओर चला जाता है
जाने क्यू सूरज
ऐसे वादा निभाता है!

~~~ लड़ाई !!! ~~~

एक दिन
चाँद लड़
पड़ा
खेलते-खेलते
तारो के
साथ.
रूठे हुए
छोटे बच्चे-सा
मुह बनाके, वो
आ गया
मेरे कमरे मैं
खिड़कीसे.
पूरी रात
फ़रियाद करता रहा
ओर
याद करता
रहा
कैसे तारोने
उसे दौड़ाया
पूरे आकाश मे
खेलते-खेलते.
मैने बहुत समज़ाया
तब जाके माना.
थोड़ा थोड़ा
फ़िरसे
खेलने लगा हर रोज़
तारो के साथ.
पर
अब उसे पता था
की
कभी कभी तारो को भी
ख़ुद को ढूँढने का
मौक़ा
देना है
इसी लिए
तबसे
अब वो एक
पूरी रात
मेरे साथ होता है!!!

Friday, August 3, 2007

~~~ सूरज का चाँद ~~~

सूरज को मन किया
मिलने से चाँद को
ओर बस
वो निकल पड़ा
चलता रहा
बस चलता रहा।
एक पल भी नही रहा खड़ा.

चाँद तो बस
बेख़बर-सा
सूरज से और
खुदसे
रात के आगोशमे
तारो के साथ
बतियाने मे लगा था.
उसे क्या पता
सूरज उसके पास
आकर मिलना चाहता है उसे
-पल भर.

चाँद से मिलने की
ख़्वाहिश मे
कभी पास
कभी दूर
होता चला
चाँद को रोशन
करता चला
सूरज
चाँद की और बढ़ता चला.

आज
लगता है
चाँद पूरा है
शायद
सूरज ने आज
चाँद को
पा ही लिया
है

ओर फिर भी
चाँद तो बेख़बर
थोड़े तारोके साथ,
सूरज से
रोशन-रोशन.

~~~ बियास के नाम ~~~

ना जाने क्या सोचकर
हर बार
तेरे पास आ जाती हूँ
हर बार
तुजसे बिछड़ते वक़्त
गुमसूम सी हो जाती हूँ
हर बार
तू सीखा जाती है
सबक ज़िंदगी का नया
हर बार
मैं कुछ नया ढंग जीने का पाती हूँ

हर बार
तेरी पायल सी आवाज़
सुनती हू और संभल जाती हूँ
कुछ मुजको भूलने से पहले
ख़ुदको थोड़ा मिल जाती हूँ

हर बार तू सीखा देती है
पाना क्या है और खोना क्या
हर बार-

~~~ 21 वी सदी की लड़की का इंतज़ार ~~~

किसीने
कहा
google
search
engine
मे
ढूंढो
तो
मिल
जाता

कबसे
तेरा
नाम
डालके
बैठी
हू